श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है आपके द्वारा श्री पद्मेश गुप्त जी द्वारा लिखित  “डेड एंड” (कहानी संग्रह) पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 161 ☆

☆ “डेड एंड” (कहानी संग्रह) – लेखक – श्री पद्मेश गुप्त ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक – डेड एंड (कहानी संग्रह)

लेखक  – श्री पद्मेश गुप्त

प्रकाशक – वाणी प्रकाशन

संस्कारण – पहला संस्करण २०२४,

पृष्ठ – १०० 

मूल्य – २९५  रु

ISBN – 978-93-5518-900-4

चर्चा … विवेक रंजन श्रीवास्तव

पिछली सदी में भारत से ब्रेन ड्रेन के दुष्परिणाम का सुपरिणाम विदेशों में हिन्दी का व्यापक विस्तार रहा है। जो भारतीय विदेश गये उनमें से जिन्हें हिन्दी साहित्य में किंचित भी रुचि थी, वह विदेशी धरती पर भी पुष्पित, पल्लवित, मुखरित हुई। विस्थापित प्रवासियों के परिवार जन भी उनके साथ विदेश गये। उनमें से जिनकी साहित्यिक अभिरुचियां वहां प्रफुल्लित हुईं उन्होंने मौलिक लेखन किया, किसी हिन्दी पत्र पत्रिका का प्रकाशन विदेशी धरती से शुरु किया । सोशल मीडिया के माध्यम से उन छोटे बड़े बिखरे बिखरे प्रयासों को हि्दी साहित्य जगत ने हाथों हाथ लिया। भोपाल से प्रारंभ विश्वरंग, विश्व हिंदी सम्मेलन, विदेशों में भारतीय काउंसलेट आदि ने प्रवासी हिन्दी प्रयासों को न केवल एकजाई स्वरूप दिया वरन साहित्य जगत में प्रतिष्ठा भी दिलवाई। प्रवासी रचनाकारों की सक्षम आर्थिक स्थिति के चलते भारत के नामी प्रकाशनो ने साहित्य के गुणात्मक मापदण्डो को किंचित शिथिल करते हुये भी उन्हें हाथों हाथ लिया। वाणी प्रकाशन, नेशनल बुक ट्र्स्ट, इण्डिया नेट बुक्स, शिवना प्रकाशन आदि संस्थानो से प्रवासी साहित्य की पुस्तकें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। विदेश से होने के कारण भारत में प्रवासी रचनाकारों की स्वीकार्यता अपेक्षाकृत अधिक रही है। डॉ॰ पद्मेश गुप्त ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल केअत्यंत सक्षम  हिंदी बहुविध रचनाकार हैं। उन पर विकिपीडिया पेज भी है। डॉ॰ पद्मेश गुप्त ने यू॰के॰ हिन्दी समिति एवं `पुरवाई’ पत्रिका के माध्यम से हिन्दी को  प्रतिष्ठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मूलत: वे कवि हैं, किन्तु उनकी कहानियाँ भी बेहद प्रभावी हैं। उनका अनुभव संसार वैश्विक है, वे नये नये बिम्ब प्रस्तुत करते हैं। हाल ही लंदन बुक फेयर में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में पद्मेश गुप्त के कहानी संग्रह ‘डेड एंड‘ का विमोचन संपन्न हुआ था। संयोगवश मैं भी लंदन प्रवास में होने से इस आयोजन में भागीदार रहा। इस संग्रह में कुल नौ कहानियां अस्वीकृति, औरत प्रेम सिर्फ एक बार करती है, डेड एंड, इंतजार, कशमकश, तिरस्कार, तुम्हारी शिवानी, कब तक और यात्रा सम्मिलित हैं।

कहानी अस्वीकृति में ई मेल बिछड़े प्रेमियों राजीव और अनीशा को फिर से मिलवाने का माध्यम बनती है। इस तरह का नया प्रयोग समकालीन कहानियों में नवाचारी और अपारंपरिक ही कहा जायेगा। पूर्ण समर्पण को उद्यत अनीशा के प्रस्ताव के प्रति समीर की अस्वीकृति से पल भर में  अनीशा के प्रेम, भावनाओ, और समर्पण की इमारत खंडहर हो गयी। कहानी “औरत प्रेम सिर्फ एक बार करती है” में पद्मेश गुप्त का कवि उनके कहानीकार पर हावी दिखता है। एक लम्बी काव्यात्मक अभिव्यक्ति से कथा नायक राम, सुजान के संग बिताये अपने लम्हे याद करता है। … सुजान के बेटे लव में राधिका ने राम की छबि देख ली थी, वह दुआ मांगने लगी कि अब किसी मोड़ पर कोई कुश न मिल जाये। …. औरत प्रेम सिर्फ एक बार करती है …. सुजान का वह वाक्य एक बार फिर राम के हृदय में गूंजने लगा। कहानी प्रेम त्रिकोण को नवीन स्वरूप में रचती है, जिसमें राम, राधिका, लव के पुरातन प्रतीको को लाक्षणिक रूप से किया गया प्रयोग भी कहानीकार की प्रतिभा और भारतीय मनीषा के उनके अध्ययन को इंगित करता है। ‘डेड एंड’ कहानी के गहन भाव और सुघड़ शिल्प ने पद्मेश गुप्त के कहानी बुनने के कौशल को उजागर किया है। हिन्दी कहानी के अंग्रेजी शब्दों के शीर्षक से विदेशों में बदलते हिन्दी के स्वरूप का आभास भी होता है। पुस्तक की अनेकों कहानियों में संवाद शैली का ही प्रयोग किया गया है। ढ़ेरों संवाद अंग्रेजी में हैं। … मिनी ने हँसते हुये उत्तर दिया ….  ” आई नो वी कांट विदाउट ईच अदर “। इंतजार वर्ष २००६ में लिखी गई पुरानी कहानी है, यह स्पष्ट होता है क्योंकि अंदर वर्णन में मिलता है ” आज २१ मार्च २००६ को शादी की पाँचवी वर्षगांठ का दिन दीपक ने शालिनी से अपने दिल की बात कहने के लिये चुना। … वह महसूस कर रहा था कि अंजली उसका बीता हुआ कल है और शालिनी भविष्य। किन्तु कहानी का ट्विस्ट और चरमोत्कर्ष है कि दीपक को एक पत्र बेड के पास मिलता है जिसमें लिखा था … मैं तुम्हारे जीवन से सदा के लिये जा रही हूं, मैं राजेश से विवाह कर रही हूं … शालिनी। कहानी के मान्य आलोचनात्मक माप दण्डो पर पद्मेश जी की कहानियां खरी हैं। कहानी ‘कब तक‘ आज के परिदृश्य में प्रासंगिक है। ये कहानियां स्वतंत्र प्रेम कथायें हैं। यदि कथाकार भाषा की समझ रखता है। उसमें समाज के मनोविज्ञान की पकड़ है तो प्रेमकथायें हृदय स्पर्शी होती ही हैं। पद्मेश की कहानियां भी पाठक के दिल तक पहुंच बनाती हैं। कशमकश संग्रह की सर्वाधिक लंबी कहानी है जिसमें कथानक का निर्वाह उत्तम तरीके से हुआ है। तिरस्कार से अंश उधृत है …सिमरन का घमण्ड चूर होने लगा। जिस गोरे रंग पर सिमरन को इतना नाज था, उसी के कारण आये दिन उसका तिरस्कार होता। …. राखी को लोगों से बहुत प्रशंसा मिली पर सिमरन ने यह कहकर उसका मजाक बनाया कि साँवली होने के कारण उसे एशियन लड़की भूमिका बहुत सूट कर रही थी। …. सिमरन अखबार उठाकर बैठ गई, अचानक उसकी नजर तीसरे पेज पर पड़ी … सिमरन चौंक गई … यह तसवीर उसकी छोटी बहन राखी की थी, नीचे लिखा था इस साल विश्वसुंदरी का खिताब भारत की राखी ने जीता है। कहानी इस चरम बिंदु के साथ स्किन कलर रेसिज्म और वास्तविक सौंदर्य पर अनुत्तरित सवाल खड़े करते हुये पूरी हो जाती है। तुम्हारी शिवानी भी रोचक है। ‘कब तक’ मिली-जुली संस्कृति के टकराव की व्याख्या करती है। यात्रा में लेखक के आध्यात्मिक चिंतन से परिचय मिलता है ” आत्मा अमर है, शरीर वस्त्र। आत्मा शरीर बदलती है, नया जन्म होता है।

कहानी में रुचि रखते हैं तो डेड एंड शब्दों  में बांधते हुये प्रेम को व्यक्त करता नये वैश्विक बिम्ब बनाता रोचक कहानी संग्रह है। सरल सहज खिचड़ी भाषा में बातें करता यह कहानी संग्रह समकालीन वैश्विक परिदृश्य को अभिव्यक्त करता पठनीय और संग्रहणीय है। कुल मिलाकर मुझे हर कहानी पठनीय मिली। सब का कथा विस्तार बताकर मैं आप का वह आनंद नहीं छीनना चाहता जो कहानी पढ़ते हुये उसकी कथन शैली में डुबकी लगाते हुये आता है। वाणी प्रकाशन से सीधे बुलाइये या अमेजन पर आर्डर कीजीये, पुस्तक सुलभ है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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