श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं होली के पर्व पर होली की मस्ती में सराबोर एक श्रृंगारिक गीत “रंग गुलाबी बरसे बदरिया”। इस अतिसुन्दर गीत के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 39☆
☆ होली पर्व विशेष – रंग गुलाबी बरसे बदरिया☆
रंग गुलाबी बरसे बदरिया
पी के मिलन को तरसे अखियां
इधर उधर से नजर चुरा के
तुम कब मिलोगे हमसे सांवरिया
घर में मन लगता नहीं है
बिन देखे चैन पड़ता नहीं है
चुपके से मिलने का कोई बहाना
लिखकर कब अब भेजोगे पतिया
सूना सूना है मेरे घर का आंगन
मैय्या बाबुल न भाई बहना
आओगे कब राह देख रही सजना
फागुन की होली का करके बहाना
जब तुम आओगे नैनों में कजरा
सजा के रखूंगी बालों में गजरा
अपने ही रंग में रंग लूं सांवरिया
रंग गुलाबी बरसे बदरिया
रुत है मिलन की मेरे सांवरिया
गुजिया पपडी खोये की मिठाइयां
होश गवा दे भांग की ठंडाईया
अपने हाथों से पिलाऊगी सैंया
रंग गुलाबी बरसे बदरिया
अपने पिया की मै तो बांवरिया
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश