सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “ मुसाफिर ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 30☆
ज़्यादा, ज़्यादा और ज़्यादा
बारिश के इस मौसम में
मैं तुम्हें खोना भी नहीं चाहती,
पर तुमने तो जाने की
ठान ही ली है, है ना?
चले जाओ!
न ही तुम्हें मैं आवाज़ दूँगी,
न तुमसे रुकने की
कोई नम्र गुजारिश करूंगी
और न ही कोई हठ करूंगी…
आखिर जाने वाले को
रोका भी नहीं जा सकता ना?
सुनो ए आफताब!
जा रहे हो तुम
अपनी रज़ामंदी से,
ज़रूरी नहीं
कि जब तुम वापस आओ
मैं तुम्हारी बाहों में सिमट जाऊं,
आखिर मेरी भी तो कोई मर्ज़ी है, है ना?
जब तुम वापस आओगे
देखती रहूँगी तुम्हें आसमान पर,
तुम बस आते और जाते रहना
जैसे किसी राह पर मिले
हम कोई मुसाफ़िर थे,
और भूल गए एक दूसरे को
कुछ पल साथ चलकर!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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