श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना कस न भेद कह देय। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 204 ☆ कस न भेद कह देय

बुद्धि और  बुद्धिमान दोनों एक होकर भी अलग रहते हैं। यदि सही समय पर सही निर्णय नहीं लिया तो बुद्धि होने का क्या फायदा। बुद्धिमान व्यक्ति अपनी क्षमता का लोहा मनवा लेता है। अधूरी बातों पर प्रतिक्रिया  देने वाले न केवल अपना वरन समाज का भी अहित करते हैं। किसी ने सही कहा है-

परिवार और समाज दोनों  बर्बाद होने लगते हैं,जब समझदार मौन और नासमझ बोलने लगते हैं।

मनोवैज्ञानिक व्यक्ति का आचरण उसके हावभाव से तुरंत पता लगा लेते हैं। यदि व्यक्ति चालक हो तो उसे विवादों में लाकर  पहले क्रोधित करते हैं फिर वास्तव में उसका व्यक्तिव क्या है ये लोगों के सामने आ जाता है। घमंड सर चढ़कर बोलता है, व्यक्ति सही गलत का भेद भूलकर अपने स्वार्थ में अंधा होने लगता है। दूसरी तरफ जमीन से जुड़ा व्यक्ति हर परिस्थिति में सही का साथ देता है। मेहनत रंग लाती है, धीरे- धीरे लोग उसके साथ जुड़कर उसे विजेता बनाने में जुट जाते हैं। सच्चे रिश्ते स्वार्थ से ऊपर उठकर  जीना जानते हैं। डिजिटल युग में क्रियेटर  अपने फालोवर के दम पर अपने को शक्तिशाली घोषित करते हैं। बहुत से ऐसे शो बन रहे हैं जहाँ दर्शक पात्रों के साथ जुड़कर उनके व्यक्तित्व को परखते हैं, उनके लिए वोटिंग करते हैं। सबके सामने असली चेहरा कुछ दिनों में आ जाता है। व्यक्ति अपने आचरण से अपनी कामयाबी की गाथा लिखता है। जनमानस के हृदय में स्थान ऐसे ही नहीं मिलता। अच्छे विचारों के साथ सबका हित साधने की कला जिस साधक के पास होगी वही सच्चे अर्थों में विजेता बनेगा।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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