श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “जाहि निकारि गेह ते…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 205 ☆ जाहि निकारि गेह ते… ☆
वैचारिक रूप से समृद्ध व्यक्ति सही समय पर सही फैसले करता है। जनकल्याण उसके जीवन का मूल उद्देश्य होता है। कहते हैं-
प्रतिष्ठा का वस्त्र जीवन में कभी नहीं फटता, किन्तु वस्त्रों की बदौलत अर्जित प्रतिष्ठा, जल्दी ही तार- तार हो जाती है।
अक्सर लोग कहते हुए दिखते हैं- चार दिन की जिंदगी है, मौज- मस्ती करो, क्या जरूरत है परेशान होने की। कहीं न कहीं ये बात भी सही लगती है। अब बेचारा मन क्या करे? सुंदर सजीले वस्त्र खरीदे, पुस्तकें पढ़े, सत्संग में जाए या मोबाइल पर चैटिंग करे?
प्रश्न तो सारे ही कठिन लग रहे हैं, एक अकेली जान अपनी तारीफ़ सुनने के लिए क्या करे क्या न करे?
15 लोगों का समूह जिन्हें एक जैसी परिस्थितियों में रखा गया , भले ही वे अलग- अलग पृष्ठभूमि के थे किन्तु मिलजुलकर रहने लगे। इस सबमें थोड़ी बहुत नोकझोक होना स्वाभाविक है। यहाँ अवलोकन इस आधार को ध्यान में रखकर किया गया कि सबसे ज्यादा सक्रिय कौन सा सदस्य है। जो लगातार न केवल स्वयं को योग्य बना रहा है वरन वो सब भी करता जा रहा है जिसके कारण उसका चयन यहाँ हुआ है।
देखने में स्पष्ट रूप से पाया गया कि जमीन से जुड़ी प्रतिभा न केवल शारीरिक दृष्टि से मजबूत है बल्कि उसकी सीखने की लगन भी उसे शिखर पर पहुँचा रही है। वहाँ उपस्थित सभी लोग उसका लोहा मान रहे हैं। कुछ लोग दबी जुबान से उसकी तारीफ करते हैं।
कहने का अर्थ यही है कि लगातार सीखने की इच्छा आपको सर्वश्रेष्ठ बनाती है। केवल एक पल का विजेता बनना आपको शीर्ष पर भले ही विराजित कर दे किंतु हर क्षण का सदुपयोग करने वाला सच्चा विजेता होता है। उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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