श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – सजा राम का सरयू तट है। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 137 – सजल – सजा राम का सरयू तट है… ☆

सजा राम का सरयू तट है।

खड़ा कृष्ण का वंशी वट है।।

*

कौन भला है कौन बुरा अब

सबका मन देखो नटखट है।

*

मानव भूला जिम्मेदारी,

जात-पाँत की कड़वाहट है।

*

नेताओं के बदले तेवर,

सबकी भाषा अब मुँहफट है।

खुला द्वार भ्रष्टाचारों का,

देखो लगा बड़ा जमघट है।

*

धर्म धुरंधर बने सभी अब,

घर-बाहर इनके खटपट है।

*

आतंकी घुसपैठी करते,

यही समस्या बड़ी विकट है।

*

हाथों में आया मोबाइल,

मेल-जोल का अब झंझट है।

*

कलम उठा कर लिखता कविता

मेरे मन की अकुलाहट है।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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