श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “उजालों के गीत…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 63 ☆ उजालों के गीत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

उजालों के गीत

रातों में लिखे हैं।

 

परिंदों की कथाओं में

चुप रहे सारे शिखर

और बादल ने बहाया

ढेर सा पानी मगर

 

घड़े पानी के

बहुत ऊँचे बिके हैं।

 

हर सबक़ झूठा लगा

अधूरी प्रविष्टियाँ

बाँच पाए नहीं अब तक

ज़िंदगी की चिट्ठियाँ

 

प्रेम के व्यवहार

घृणा से चुके हैं ।

 

क़ैद होकर रह गईं हैं

अपनी सभी पहचान

घोंसलों से दूर होती

साहस भरी उड़ान

 

सभी परिचय

डरे बैठे थके हैं।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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