श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – बात रूह से रूह तक जब पहुंचे…। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 224 ☆
☆ एक पूर्णिका – बात रूह से रूह तक जब पहुंचे… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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दिलों में जब भी खाई होती है
प्रीत अपनी नहीं पराई होती है
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मिल जाएं अगर दिल से दिल जहां
वहां ही तब सच्ची खुदाई होती है
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बात रूह से रूह तक जब पहुंचे
दिलों में तभी सच्चाई होती है
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उसे क्या मिलेगा सुकून जहां में
साख जिसने अपनी गवाई होती है
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रुलाती है जो यहां हर किसी को
वो कुछ और नहीं महंगाई होती है
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रखते हैं वफा में मिलने की जुस्तजू
मंजूर उन्हें कहां जुदाई होती है
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याद लाती है जब भी करीब उनको
संतोष मैं और मेरी तनहाई होती है
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
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