स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 200 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
यह गंधर्व विद्या की ज्ञाता है
देव दुर्लभ रूप है
अवश्य ही यह
अनेक तेजस्वी संतानों को
जना देने में
समर्थ है।‘
काम मोहित
हर्यश्व ने
दीन स्वरों में
कहा
‘ऋषिवर
मैं दे सकूँगा
केवल
दो सौ श्यामकर्ण अश्व ।
और
यह सौन्दर्य प्रतिमा
बनेगी
मेरे एक पुत्र की
”जननी।’
और फिर
माधवी बनी
हर्यश्व की
अंकशायिनी,
जन्म दिया
पुत्र
वसुमना को ।
फिर
पीछे छूटा
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈