श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनका हास्य का पुट लिए एक व्यंग्य “थोड़े में थोड़ी सी बात”। आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 38 ☆
☆ व्यंग्य – थोड़े में थोड़ी सी बात ☆
गंगू बचपन से ही थोड़ा संकोची रहा है। संकोची होने से थोड़े-बहुत के चक्कर में फंस गया, हर बात में थोड़ा – थोड़ी जैसे शब्द उसकी जीभ में सवार रहते , इसीलिए शादी के समय भी लड़की वाले थोड़ा रुक जाओ थोड़ा और पता कर लें का चक्कर चला के शादी में देर करते रहे, हालांकि हर जगह बात बात में थोड़ा – थोड़ा, थोड़ी – थोड़ी की आदत वाले खूब मिल जाते हैं पर गंगू का थोड़ी सी बात को अलग अंदाज में कहने का स्टाइल थोड़ा अलग तरह का रहता है।
रेल, बस की भीड़ में कोई थोड़ी सी जगह बैठने को मांगता तो गंगू उसको थोड़ी सी जगह जरुर देता, भले सामने वाला थोड़ी सी जगह पाकर पसरता जाता और गंगू संकोच में कुकरता जाता। जब चुनाव होते तो नेता जी थोड़ा सा हाथ जोड़कर गंगू से कहते – इस बार थोड़ी सी वोट देकर हमारे हाथ थोड़ा मजबूत करिये तो गंगू खुश होकर दिल खोलकर पूरी वोट दे देता। घरवाली को इस थोड़े – थोड़े में थोड़ी बात रास नहीं आती थी जब गंगू दाल में थोड़ा नमक डालने को कहता तो घरवाली थोड़ा थोड़ा करके खूब सारा नमक डाल देती इसलिए गंगू थोड़ा सहनशील भी हो गया था।
इन दिनों कोरोना के डर से गंगू थोड़ा परेशान है उसने घरवाली को भी कोरोना से थोड़ा डरा दिया है इसीलिए आजकल घरवाली गंगू को सलाह देने लगी है कि
“थोड़ी थोड़ी पिया करो….”
थोड़ी थोड़ी पीने के चक्कर में गंगू आजकल भरपेट पीकर कोरोना को भुलाना चाहता है। खूब डटकर पीकर जब घरवाली को तंग करने लगता है तो घरवाली कहती है….
….. “थोड़ा.. सा… ठहरो
करतीं हूं तुमसे वादा
पूरा होगा तुम्हारा इरादा
मैं सारी की सारी तुम्हारी
थोड़ा सा रहम करो……
ऐन टाइम में ये थोड़ा – थोड़ी का चक्कर गंगू का सिर दर्द भी बन जाता है। वो थोड़ा देर ठहरने को कहती है और थोड़ा सा बहाना बनाकर बाथरूम में घुस जाती है, लौटकर आती है तो मोबाइल की घंटी बजने लगती है फिर थोड़ा थोड़ा कहते लम्बी बातचीत में लग जाती है।
अभी उस दिन घर में सत्यनारायण की कथा हो रही थी तो घरवाली थोड़े में कथा सुनने के मूड में थी सजी-संवरी तो ऐसी थी कि कोई भी पिघल जाय। जब कथा पूरी हुई तो शिष्टाचारवश गंगू ने पंडित जी से पूछा कि चाय तो लेंगे न ? तो फट से पंडित जी ने कहा – थोड़ी सी चल जाएगी……
गंगू ये थोड़े के चक्कर में परेशान है थोड़े में यदि विनम्रता है तो उधर से संशय और अंहकार भी झांकता है। “थोड़ी सी चल जाएगी” इसमें भी एक अजीब तरह की अदा का बोध होता है….. खैर, पंडित जी को लोटा भर चाय दी गई और प्लेट में डाल डालकर वो पूरी गटक गए….. तब लगा कि थोड़े में बड़ा कमाल है। पंडित जी से भोजन के लिए जब भी कहो तो डायबिटीज का बहाना मारने लगेंगे, पेट फूलने का बहाना बनाएंगे, जब थोड़ा सा खा लेने का निवेदन करो तो गरमागरम 20-25 पूड़ी और बटका भर खीर ठूंस ठूंस कर भर लेंगे। तब लगता है कि थोड़े शब्द में बड़ा जादू है।
कोरोना की बात चली तो कहने लगे थोड़ा अपना हाथ दिखाइये, गंगू ने तुरंत बोतल की अल्कोहल से हाथ धोया और बोतल में थोड़ा मुंह लगाया फिर पंडित जी के सामने थोड़ा सा हाथ रख दिया। पंडित जी ने हाथ देखकर कहा – “क्या आप व्यंग्य लिखते हैं ?”
बरबस गंगू के मुख से निकल गया – हां, थोड़ा बहुत लिख लेता हूं। पंडित जी ने थोड़ा हाथ दबाया बोले – “थोड़ा नहीं बहुत लिखते हो।” इस थोड़े में विनम्रता कम अहंकार ज्यादा टपक गया। पंडित जी को थोड़ा बुरा भी लग गया तो बात को थोड़ा उलटकर बोले – “अभी भी आपके हाथ में थोड़ी थोड़ी प्यार की रेखाएं फैली दिख रहीं हैं, लगता है कि – थोड़ा सा प्यार हुआ था थोड़ा सा बाकी……”
सुनकर घरवाली की भृगुटी थोड़ी तन गई, तुरंत अपना हाथ तान के पंडित जी के सामने धर दिया। पंडित जी ने प्रेम से हाथ पकड़ कर कहा –
“बड़ी वफा से निभाई तुमने,
इनकी थोड़ी सी बेवफाई…”
गंगू ने अपना हाथ खींच लिया उसे
‘थोड़ा है थोड़े की जरूरत है’…. वाली याचना के साथ ‘बड़ी वफा से निभाई तुमने हमारी थोड़ी सी बेवफाई’ सरीखी कातरता दिखी तो घरवाली ने पंडित जी से शिकायत कर दी कि – कोरोना से बचाव के लिए इनको थोड़ी सी पीने की सलाह दी तो ये शराबी का किरदार भी निभाने लगे। झट से पंडित जी ने घरवाली की हथेली दबाकर जीवन रेखा का जायजा लिया। कोरोना का डर बताकर ढाढस दिया कि आपकी जीवन रेखा काफी मजबूत है पर हसबैंड की जीवन रेखा थोड़ा कमजोर और लिजलिजी है, सुनकर घरवाली को काफी सुकून मिला। थोड़ी देर में पंडित जी को हाथ देखने में मज़ा आने लगा बोले – कुछ चीजें इशारों पर बताऊंगा तो थोड़ा ज़्यादा समझना। गंगू के काटो तो खून नहीं बोला – पंडित जी थोड़ा थोड़ा तो हमको भी समझ में आ रहा है। उसी समय टीवी चैनल में टाफी चाकलेट बनाने वाली कंपनी का विज्ञापन आने लगा.. “थोड़ा मीठा हो जाए”……
घरवाली को याद आया फ्रिज में मीठा रखा है तुरंत गंगू को आदेश दिया – “सुनो जी, थोड़ा पंडित जी के लिए मीठा लेकर आइये।” न चाहते हुए भी गंगू ने फ्रिज खोला और गंजी भर रसगुल्ला पंडित जी के सामने रख दिया। घरवाली ने देखा तो डांट पिला दी बोली – “तुम्हें थोड़ी शरम नहीं आती क्या? पूरा का पूरा गंज धर दिया सामने….. तुम्हारे मां बाप ने ऐटीकेट मैनर नहीं सिखाये कि मेहमान को मीठा कैसे दिया जाता है, पंडित जी थोड़ा थोड़ा पसंद करते हैं।”
गंगू थोड़ा सहम गया, पंडित जी से थोड़ा चिढ़ होने लगी….. मन ही मन में सोचने लगा कि अब बुढ़ापे में क्या किया जा सकता है, बचपन में पढाई में थोड़ा और ध्यान दे देते तो थोड़ी अच्छी घरवाली मिलती। ये तो थोड़ी सी बात में लघुता में प्रभुता तलाश लेती है भला हो कोरोना का अच्छे समय आया है।
गंगू का मन भले थोड़ा सा खराब हो गया था पर पंडित जी थोड़े-थोड़े देर में गपागप रसगुल्ले गटक रहे थे और घरवाली थोड़ा और भविष्य जानने के चक्कर में दूसरा हाथ धोकर खड़ी थी और गंगू से कह रही थी कि थोड़ी देर में अपनी बात खत्म करके फिर खाना परसेगी, पर गंगू जानता है कि थोड़े शब्दों में अपनी बात खतम करने का भरोसा दिलाने वाले अक्सर माइक छोड़ना भूल जाते हैं…….
© जय प्रकाश पाण्डेय