सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “नदी ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 31☆
झरने से जब
वो नदी के रूप में परिवर्तित हुई,
उसे पेड़, बादल और हवाओं ने
अच्छी तरह समझाया
कि जो गुज़र जाती है,
उसका कभी ग़म न करना
और बस आगे ही आगे बढती रहना!
पहाड़ों का साथ छूटा,
पर वो बिलकुल नहीं रोई;
उसका पानी अब उतना साफ़ नहीं रहा,
पर वो हरगिज़ नहीं टूटी;
उसपर न जाने कितने बाँध लगाए गए,
पर उसने उफ़ तक नहीं की-
बस जैसे उसे औरों ने समझाया था
वो करती रही!
बस उसके मन में कहीं
एक ख़ामोशी जनम लेने लगी
और वो उसको लाख चाहकर भी
मिटा नहीं पा रही थी…
एक साल
इतनी बारिश बरसी
कि वो सारे बंधनों से मुक्त हो गयी
और तब समझ पायी वो
अपनी शक्ति को!
अब वो बहती है
निर्बाध, मुक्त और खुली सांस लेती हुई!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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सुंदर कविता