श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख  “जीवन यात्रा“ की अगली कड़ी

☆ कथा-कहानी # 114 –  जीवन यात्रा : 9 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

माना कि स्कूलिंग, नैसर्गिक विकास को अवरुद्ध करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है पर फिर भी यह नैसर्गिक से प्रायोजित, भौतिकता के लिए आवश्यक,और व्यक्तित्व निर्माण की ओर जाने की यात्रा कही जा सकती है.यहां शिशु न केवल शिक्षा और शिक्षण के दौर से गुजरता है बल्कि परिवार के दायरे को लांघकर बहुत सी और विभिन्न मित्रताओं के स्वाद से भी परिचित होता है. पहले सामान्य परिचय,फिर परिचय की प्रगाढ़ता जो कभी आजीवन या फिर समयकालीन मित्रता के रिश्तों में बदलती है. या फिर प्रतिस्पर्धा जो कभी प्रतिद्वंदिता और कभी नापसंदगी के रूप में अंकुरित होकर शत्रुता तक में बदले, यह स्कूल या फिर स्कूलिंग का दौर ही सिखाता है.हास्यबोध जो दोस्तों के मनोरंजन के लिए कभी खुद को भी हास्यास्पद स्थिति में डाल दे या फिर सेंस ऑफ ह्यूमर जो गाहे बगाहे चुटीली टिप्पणियों से माहौल को हल्के पर बौद्धिक मनोरंजन की डोज़ देता रहे,यह छात्रजीवन में ही उपजता है.यह तो सर्वमान्य और अटल सत्य है कि छात्रजीवन विशेषकर स्कूल लाईफ ही वह महत्वपूर्ण सुरंग होती है जहाँ एक सिरे से प्रविष्ट “अबोध,उत्सुक पर भयभीत,पेरेंट्स के सुरक्षाकवच से दूर शिशु”,दूसरे छोर से “आश्वस्त या अभ्यस्त,निर्भीकता से परिपक्व और निर्भरता को तिलांजलि देकर आत्मनिर्भरता से पगे हुये पकवान की तरह” बाहर आता है.नर्सरी को छोड़कर स्कूलिंग के ये बारह साल उसके “व्यक्तित्व निर्माण, मन:स्थिति और इच्छाशक्ति,चारित्रिक दृढ़ता या फिर दुर्बलता,मानसिक और शारीरक दक्षता” का निर्माण करते हैं.”प्रतिकूलता को भी सहजता से लेना” या फिर “अनुकूलता में भी तनावग्रस्त होना” उसे स्कूलिंग ही सिखाती है.संवेदनशीलता की मौजूदगी, उपेक्षा को पचाकर और ज्यादा मजबूती से संघर्षरत रहना उसे स्कूल ही सिखाते हैं.

स्थूल रूप से समाज में ये मान लिया जाता है कि स्कूल से डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर,एडवोकेट, बैंकर तैयार होते हैं पर ये मान्यता खोखली होती है.स्कूल प्रारंभिक शिक्षा के अलावा सिर्फ व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं जो आगे चलकर अपनी इस फाउंडेशन के बल पर ये प्रोफेशनल विशेषज्ञता हासिल करते हैं.सारी नामचीन हस्तियां जिन्होंने अपनी उपलब्धियों के बल पर समाज और दुनियां में जगह बनाई वो सब इस स्कूलिंग के दौर में हासिल गुणों को ही बाद में विकसित और परिमार्जित कर ही अपने अपने मुकाम को हासिल कर पाये.स्कूलिंग के इस दौर के बारे में जितना लिखा जाय कम ही होगा इसलिए

“जीवन यात्रा जारी रहेगी”

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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