श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता पावस प्रणाम” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #242 ☆

☆ पावस प्रणाम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

धरा की अम्बर से मनुहार

रम्य ऋतु पावस के उपहार

बँधे झूले अमुआ की डार

हुई स्वीकृत सब निविदाएँ

ऐसे स्नेहिल मौसम में

कुछ गीत गुनगुनाएँ

चलो हम सावन हो जाएँ।।

 

ताप मिटा तन का वसुंधरा पावस नीर नहाई

हरी ओढ़नी ओढ़ प्रफुल्लित मन ही मन मुस्काई

मची बादल बिजुरी में रार

बँटे नहीं उसका अपना प्यार

कुपित हो चमके बारम्बार7

आँख धरती को दिखलाए

ऐसे स्नेहिल मौसम में

कुछ गीत गुनगुनाएँ

चलो हम सावन हो जाऍं।।

 

ताल-तलैया भरे

बाँध ने तोड़ी निज मर्यादा

नदी विहँसती चली लक्ष्य

प्रियतम सिन्धु का साधा

झमाझम पावस की बौछार

झींगुरों की अविचल गुंजार

प्रकृति में बज उठे सितार

बीज खेतों में अँकुराए

ऐसे स्नेहिल मौसम में

कुछ गीत गुनगुनाएँ

चलो हम सावन हो जाएँ।।

 

पशु पक्षी वनचर विभोर

नव युगल मुदित बौराये

बाँच रहा सावन प्रेमिल

पावस की पुनित ऋचाएँ

पुण्यमय पर्व तीज त्योहार

सृष्टि में आया नवल निखार

प्रीत की बहती रहे बयार

करें नित नई सर्जनाएँ

ऐसे स्नेहिल मौसम में

कुछ गीत गुनगुनाएँ

चलो हम सावन हो जाएँ।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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