डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से हम आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय कविता रिश्ते… । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 245 ☆
☆ रिश्ते… ☆
रिश्ते
नाजुक हैं कांच की तरह
टूट जाते हैं
मिट्टी के घरौंदों की तरह
फिर भी इन्सान
संजोता है सपने
करता है अपेक्षाएं अपने बच्चों से।
बच्चे !
जो पंख निकलते ही
उड़ जाते हैं निश्चिंत हो
बना लेते हैं रास्ता नि:सीम गगन में
बसा लेते हैं आशियां
किसी तरू की शाखा पर।
सपनों की भांति ही
टूट जाते हैं नाजुक रिश्ते
तन्हा रह जाते हैं इन्सान।
बच्चे
अब उड़ना सीख चुके हैं
मंजिल तय कर चुके हैं
उनके अपने रास्ते हैं
वे बसा लेंगे अलग
अपना आशियां सुंदर
वह अकेला, निपट अकेला
रो रहा है और हंस रहे हैं
उस पर दूर खड़े
जन्म-जन्म साथ निभाने
कसमें खाने वाले, दगा देने वाले
अजनबी से
ये रिश्ते।
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी
संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈