श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।
ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है – “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले”।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
स्व चंद्रकांत देवताले
☆ कहाँ गए वे लोग # २६ ☆
☆ “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
म.प्र.के बैतूल जिले के एक गांव में 07.11.1936 को चंद्रकांत देवताले का जन्म हुआ था। वे जितने उम्दा कवि-लेखक, समीक्षक थे, उतने ही सरल और फक्कड़ इंसान थे। अस्सी बरस की आयु पूरी कर वे 14 अगस्त 2017 को वे इस दुनिया को अलविदा कह कर चले गए।
मैं आता रहूंगा
उजली रातों में
चन्द्रमा को गिटार सा बजाऊंगा
तुम्हारे लिए
वे आधुनिक जीवन की विविधताओं और विडम्बनाओं के ऐसे कवि हैं जिनकी जड़ें गांव कस्बों के निम्न मध्यवर्गीय जीवन में थीं। उनके काव्य संग्रह के नाम कुछ तरह के हैं ‘हड्डियों में छिपा ज्वर,’ ‘लकड़बघ्घा हंस रहा है,’ ‘भूखंड तप रहा है,’ ‘रौशनी के मैदान की तरफ़,’ ‘आग हर चीज़ में बताई गयी थी,’ ‘पत्थर की बेंच,’ ‘इतनी पत्थर रौशनी,’ ‘उजाड़ में संग्रहालय,’ ‘बदला बेहद मंहगा सौदा’ …. वे ऐसे तो वर्ष 1954 से कविता लिख रहे थे; पर उनकी पहचान साठोत्तरी पीढ़ी के कवियों के साथ जुड़ी थी| विभिन्न भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं में भी देवताले की कविताएं अनूदित हुईं हैं। वे लम्बे समय तक प्रेमचंद सृजनपीठ’ उज्जैन के निदेशक भी रहे। मध्य प्रदेश शासन के ‘शिखर सम्मान,’ ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान के साथ-साथ ‘पहल सम्मान’ और ‘सृजन भारती’ सम्मान से सम्मानित देवताले जी ने दिलीप चित्रे की प्रतिनिधि कविताओं का मराठी से अनुवाद भी किया था। उन्होंने कविताओं में अपनी बात बहुत आत्मीयता के साथ,लेकिन सीधे और मारक तरीके से कही है, उनकी एक कविता ‘अन्तिम प्रेम’ की चार पंक्तियां…
“ऐसे ज़िंदा रहने से नफ़रत है मुझे
जिसमें हर कोई आए और मुझे अच्छा कहे
मैं हर किसी की तारीफ़ करते भटकते रहूँ
मेरे दुश्मन न हों
और इसे मैं अपने हक़ में बड़ी बात मानूं”
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
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