सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम ग़ज़ल – अब मुख़्तसर करेगें… ।
रचना संसार # 19 – ग़ज़ल – अब मुख़्तसर करेगें … ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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ख़ुद की नज़र लगी है अपनी ही ज़िन्दगी को
ज़िंदा तो हैं मगर हम तरसा किये ख़ुशी को
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महफूज़ ज़िन्दगानी घर में भी अब नहीं है
पायेगा भूल कैसे इंसान इस सदी को
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कैसी वबा जहाँ में आयी है दोस्तों अब
हालात-ए-हाजरा में भूले हैं हम सभी को
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हमदर्द है न कोई ये कैसी बेबसी है
ले आसरा ख़ुदा का बैठे हैं बंदगी को
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गर्दिश की तीरगी है आँखों में भी नमी है
उल्फ़त को ढूँढते थे पाया है दिल्लगी को
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अब मुख़्तसर करेगें हम ज़ीस्त का ये किस्सा
पैग़ाम-ए-इश्क़ देगें हम रोज आदमी को
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वहदानियत को उस की मीना न दो चुनौती
रहमत ख़ुदा की देखो मिलती है हर किसी को
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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