प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण गीत  – “आदमी भगवान है…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 192 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत आदमी भगवान है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

जानता तो है कि वह दो दिनों का मेहमान है

पर सँजो रक्खा है कई सौ साल का सामान है।

जरूरत से ज्यादा रखता और कोई दिखता नहीं

आदमी सा भी कहीं दुनियाँ में कोई नादान है !।। १ ।।

*

आदमी को अपने उपर जो बड़ा अभिमान है

व्यर्थ उसका दम्भ झूठा ज्ञान औ’ विज्ञान है ।

खुद तो डरता, दूसरों की मौत से पर खेलता ।

आने वाले पल का तक उसको नहीं अनुमान है ।। २ ।।

*

हर घड़ी जिसके कि मन में स्वार्थ का तूफान है

नष्ट करने औरों को जिसने रचा सामान है

प्रेम से अपनों के पर जो साथ रह सकता नहीं

वह ज्ञान का धनवान है इंसान या शैतान है ? ।। ३ ।।

*

काम करना कठिन है कहना बहुत आसान है

प्रेम से उंचा न कोई धर्म है न ज्ञान है।

आदमी को इससे हिलमिल सबसे रहना चाहिये

सबको खुश रख खुश रहे तो आदमी भगवान है ।। ४ ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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