श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “ज़िन्दादिली से जीता हैं ज़िंदगी को…” ।)
ग़ज़ल # 136 – “ज़िन्दादिली से जीता हैं ज़िंदगी को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
☆
जिसके माथे पर चोट का निशान है,
यह आदमी एक मुकम्मल बयान है।
*
यायावरी उसकी गुल खिलाएगी ज़रूर,
उसके कदम बिजली नज़र में जहान है।
*
यह दूसरों जैसा शख़्स दिखता तो है,
यारों पे मगर यह दिल से मेहरबान है।
*
ज़िन्दादिली से जीता हैं ज़िंदगी को,
ज़िंदगी जी लेना उसका अरमान है।
*
पुट्ठी इकलंगा धोबीपछाड़ मारता है,
वो मिट्टी से जुड़ा देशी पहलवान है।
*
उसके पास दिमाग़ तो दूसरों जैसा है,
परंतु ज़माने के हिसाब से शैतान है।
*
वो भी फिसला कठिन डगर पर कई दफ़ा,
मगर उसकी कामयाबी अजीमुश्शान है।
*
दिखता भले ही आतिश होशियार चतुर,
ख़ुद को जन्म से समझता नादान है।
☆
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈