प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता – “सुखदाई वर्षा। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 193 ☆ सुखदाई वर्षा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

आती जब बरसात सुहानी

लेकर घन कारे कजरारे-

सदा उमगता आंनंद मन में

छाते हैं सपने रतनारे।

*

सावन ही सुखपुर बौछारें

 दु‌नियाँ को देती हरियाली

इन्द्रधनुष से दृश्य उभरते

छुप जाते नभ के सब तारे

*

 उड़‌ते दिखने बादल- बगुले

आसमान में पंख पसारे

बरसाते जाते है पानी

जो है जीवन प्राण हमारे।

*

नदी-जलाशय सब भर जाते

लोग खुशी में रमते-गाते

घर घर झूला डाल झुलाने

आते है त्यौहार हमारे

*

पर जब बाढ़ तेज बारिश का

वर्षा दुखद रूप दिखलाती

उससे होते कष्ट अनेकों

जन जीवन में सब घबराते

*

वर्षा जो देती है खुशियां

आकांक्षाओं को उपजाती

सदा उसी की प्रति नीति से

भारत का भंडार बढाती

*

कृषको के जीवन में कम वर्षा

या अतिवर्षा लाती बरबादी

सरल शांत संतोषी भारत

है समता सुविधा का आदी

*

बसुधा एक कुटुम्ब हमारा

 हम सबकी है यही भावना

सभी जिये सुख से निर्भय हो

सब की यही रही परिपाटी।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments