आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – याद…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 203 ☆
☆ सॉनेट – याद ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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याद झुलाती झूला पल पल श्वासों को,
पेंग उठाती ऊपर, नीचे लाती है,
धीरज रस्सी थमा मार्ग दिखलाती है,
याद न मिटने देती है नव आसों को।
याद न चुकने-मिटने देती त्रासों को,
घूँठ दर्द के दवा बोल गुटकाती है,
उन्मन मन को उकसाती हुलसाती है,
याद ऊगाती सूर्य मिटा खग्रासों को।
याद करे फरियाद न गत को बिसराना,
बीत गया जो उसे जकड़ रुक जाना मत,
कल हो दीपक, आज तेल, कल की बाती।
याद बने बुनियाद न सच को ठुकराना,
सुधियों को संबल कर कदम बढ़ाना झट,
यादों की सलिला, कलकल कल की थाती।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
शुक्रवार, १२ अप्रैल, २०२४
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