श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 134 ☆
☆ मुक्तक – ।। विजयदशमी पर्व ।। भीतर का भी रावण मारें ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
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[1]
समाज का सुधार भी करें और खुद को भी सुधारें।
दूसरों की ही गलती नहीं अंतःकरण को भी निहारें।।
विजयदशमी का यह पर्व है बुराई पर जीत का।
बस पुतला दहन ही काफी नहीं भीतर का रावण मारें।।
[2]
हमारे भीतर छिपा दशानन उसको भी हमें हराना है।
काट-काट कर दस शीश हमें नामो निशान मिटाना है।।
यही होगा विजयदशमी पर्व का सच्चा हर्ष उल्ल्हास।
अपने भीतर के रावण पर भी हमें विजय को पाना है।।
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।। विजयदशमी पर्व की अनन्त असीम शुभकामनाओं सहित।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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