सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – भारी है माथे की बिंदी 

? रचना संसार # 2 – गीत – भारी है माथे की बिंदी…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

निष्ठुर प्रीति जलाती मुझको,

आग लगी है कौन बुझाए।

विरह-वेदना बढ़ती रहती,

नित प्रियतम की याद सताए।।

 *

भारी है माथे की बिंदी

अँसुवन की बहती मधुशाला।

मन वीणा के स्वर अनुकंपित,

पी अधरों ने जैसे हाला।।

गीत नशीले ये सावन के,

अल्हड़ हिय को कौन सुनाए।

 *

धरा प्रणय की सेज बिछाकर,

नील गगन को नित्य पुकारे।

सकुचाई ये धवल चाँदनी,

दर्पण शशि प्रतिबिंब निहारे।

अवगुंठन खोले कलियों का,

भ्रमर निगोड़ा मन ललचाए।।

 *

करती हूँ मैं नित्य प्रतीक्षा,

लगे दिग्भ्रमित बौराई- सी।

सम्मोहित हो कामदेव से,

चंचल रति ये शरमाई -सी।।

वेद ऋचा – सी प्रीति पावनी,

नित्य मिलन की आस लगाए।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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