श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 106 ☆ देश-परदेश – चल मेरी ढोलक ☆ श्री राकेश कुमार ☆

बचपन में खरगोश की ढोलक द्वारा ननिहाल की यात्रा की कहानी आज भी जहन में हैं। उपरोक्त फोटो में भी ढोलक नुमा ड्रम (प्लास्टिक कंटेनर) देख खरगोश वाली कहानी याद आ गई।

त्यौहार के समय मुम्बई से अपने गांव की रेल यात्रा के लिए जाते हुए लोगों को रेलवे ने इस प्रकार के ड्रम के साथ यात्रा करने की अनुमति नहीं दी थी। यात्रियों को कहा गया कि अपना सामान दूसरे साधनों का उपयोग कर ले सकते हैं। परेशान/ हैरान यात्रियों ने जल्दी जल्दी बड़े कपड़े के बैग्स में भर कर ही गाड़ी में बैठ पाए। ड्रम आदि वहीं छोड़ दिए गए।

प्रश्न ये उठता है, कि ये ड्रम के साथ यात्रा क्यों हो रही थी? अधिकतर यात्री मेहनत कश होते है, और किसी उद्योग/ कारखाने में कार्य करते हैं। उद्योग में लगने वाला कच्चा मॉल इन्हीं ड्रम में आता है। वहां कार्य करने वाले मजदूरों को फैक्ट्री से ये ड्रम मुफ्त में या कुछ न्यूनतम राशि में ये ड्रम मिल जाते होंगे।

गांव में अपने परिजनों के उपयोग के लिए ये ड्रम देश की आर्थिक राजधानी से मीलों दूर गरीब के घर के एसेट्स बन जाते हैं। रईसों की बेकार वस्तुएं, गरीबों की शान बन जाती हैं।

एशियन पेंट के खाली डिब्बों की असीमित मांग रहती हैं। एक बार हमारे पड़ोसी ने हमें एक पेंट की दुकान पर खड़ा हुआ क्या देखा? दूसरे दिन घर आकर बोला जब पेंट के डिब्बे खाली हो जाएं तो सबसे पहले मुझे देना “पड़ोसी पहले”।

हमारे देश के लोग तो अमेरिका जैसे देश में समान के लिए कपड़े के थैले भर कर  ले जाते हैं। एक बार एयरपोर्ट पर अमेरिका के लिए चेक इन के समय एक व्यक्ति दो बड़े बड़े कपड़े के बैग में यात्रा कर रहा था। उत्सुकता वश हमने पूछ लिया कि इन बैग्स का क्या लाभ है? उसने बताया दस हज़ार वाले सूटकेस से ये पांच सौ वाला बैग, वापिस आकर फोल्ड कर रख सकते हैं। बड़े तेईस किलो तक सामान वाले सूटकेस के साथ तो अंतरराज्यीय यात्रा भी नहीं हो सकती हैं। कपड़े के बैग का वज़न भी सूटकेस से कम होता है, मतलब आप अधिक सामान ले जा सकते हैं।

बैंक की नौकरी समय नब्बे के दशक में कैश के लिए आर बी आई  द्वारा लकड़ी के बक्से उपयोग होते थे। हमने भी ट्रांसफर के समय टीवी सेट को सुरक्षित ले जाने के लिए उन्हीं लकड़ी के बॉक्स से एक टीवी सेट के माप का डिब्बा दो दशकों तक उपयोग किया था। घर में उस डिब्बे के ऊपर चादर डालकर बैठने के लिए भी खूब उपयोग किया। वो तो बाद में एल ई डी टीवी आ जाने से उसकी उपयोगिता समाप्त हो गई थीं।

हमारे देशवासियों की सस्ता, सुंदर और टिकाऊ साधनों का उपयोग करने की आदत है। वर्षों से सीमित संसाधनों और अभाव में जीवन यापन करने से मानसिकता भी वैसी ही बन जाती है।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments