डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है नववर्ष एवं नवरात्रि के अवसर पर एक समसामयिक “भावना के दोहे “।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 41 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
विश्वास
हमको अब होने लगा,
तुझ पर ही विश्वास
किया समर्पित आपको,
मन में है ये आस।।
अभियान
कोरोना के कहर से,
कैसे बचे जहान।
इसे रोकने चल रहे
कितने ही अभियान।।
मयंक
आज गगन पर छा गया,
रातों रात मयंक।
भरती मुझको चांदनी,
देखो अपने अंक।।
चांदनी
छाती जाती चांदनी,
है पूनम की रात।
होती है फिर से धरा,
एक और मुलाकात ।।
अभिनय
तेरा अभिनय देखकर,
मन में उठा गुबार।।
आंखों से अब पढ़ लिया,
झूठा तेरा प्यार।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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