डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की एक अति संवेदनशील सार्थक एवं नारीशक्ति पर अपनी बेबाक कविता “नया दृष्टिकोण ”. डॉ मुक्ता जी नारी शक्ति विमर्श की प्रणेता हैं । नारी जगत में पनपे नए दृष्टिकोण पर रचित रचना के लिए डॉ मुक्ता जी की लेखनी को सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 41 ☆
☆ नया दृष्टिकोण ☆
मैं हर रोज़
अपने मन से वादा करती हूं
अब औरत के बारे में नहीं लिखूंगी
उसके दु:ख-दर्द को
कागज़ पर नहीं उकेरूंगी
द्रौपदी,सीता,गांधारी,अहिल्या
और उर्मिला की पीड़ा का
बखान नहीं करूंगी
मैं एक अल्हड़,मदमस्त
स्वच्छंद नारी का
आकर्षक चित्र प्रस्तुत करूंगी
जो समझौते और समन्वय से
कोसों दूर लीक से हटकर
पगडंडी पर चल
अपने लिये नयी राह का
निर्माण करती
‘खाओ-पीओ,मौज-उड़ाओ’
को जीवन में अपनाती
‘तू नहीं और सही’को
मूल-मंत्र स्वीकार
रंगीन वातावरण में
हर क्षण को जीती
वीरानों को महकाती
गुलशन बनाती
पति व उसके परिवारजनों को
अंगुलियों पर नचाती
उन्मुक्त आकाश में
विचरण करती
नदी की भांति
निरंतर बढ़ती चली जाती
परन्तु, यह सब त्याज्य है
निंदनीय है
क्योंकि न तो यह रचा-बसा है
हमारे संस्कारों में
और न ही है यह
हमारी संस्कृति की धरोहर
खौल उठता है खून
महिलाओं को
शराब के नशे में धुत्त
सड़कों पर उत्पात मचाते
क्लबों में गलबहियां डाले
नृत्य करते
अपहरण व फ़िरौती की
घटनाओं में लिप्त देख
सिर लज्जा से झुक जाता
और वे दहेज के इल्ज़ाम में
निर्दोष पति व परिवारजनों को
जेल की सीखचों के पीछे पहुंचा
फूली नहीं समाती
अपनी तक़दीर पर इतराती
नशे के कारोबार को बढ़ाती
देश के दुश्मनों से हाथ मिलाती
अंधी-गलियों में फंस
स्वयं को भाग्यशाली स्वीकारती
खुशनसीब मानती
क्योंकि वे सबला हैं,स्वतंत्र हैं
और हैं नारी शक्ति की प्रतीक…
जो निरंकुश बन
स्वेच्छा से करतीं
अपना जीवन बसर
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
मो• न•…8588801878
डा मुक्ता जी को अनवरत बधाई।प्रथम बार आधुनिक नारी की विकृत मानसिकता पर बहुत हिम्मत जुटा कर,कठोर प्रतिक्रियाओं की परवाह किए बगैर मुक्ता जी ने अपने मुक्तकंठ से नये दृष्टिकोण की नयी दृष्टि रचित की है।यह
एक अच्छा तमाचा है उन संस्कारविहिन नारियों पर जो अपनी गौरवपूर्ण संस्कृति को अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु पददलित कर निज उन्मुक्तता का भोंड़ा ढोंग रचती हैं।