सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “रूठा वक्त ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 31 ☆
☆ रूठा वक्त ☆
जाने अनजाने में
कितना कुछ छूट गया,
ये वक्त तू बता
मुझसे क्यों रूठ गया।
हवाओं को बाँधने की
कोशिश नहीं की,
ये साँस तू बता
बंधन क्यों टूट गया ।
ज़मीं को खरीदकर
रखा नहीं है,
मिट्टी का तन मिट्टी में
ढह गया ।
ये वक्त तू बता
मुझसे क्यों रूठ गया।
© सुजाता काले
पंचगनी, महाराष्ट्रा।
9975577684