श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 315 ☆

? कविता – हरियाली… और  ? AI की कविता पर प्रतिक्रिया ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

शहर की चकचौंध

गांव का सुकून

छीन लेती है

 खो जाती है,एआई

मन की शांति

जंगल की हरियाली ही,

जीवन की सांस है।

 

कार्बन उत्सर्जन की समस्या

पर्यावरण की स्थिति

ए क्यू आई

बदतर हो रहा है,

पर्यावरण की रक्षा कर

पेड़ लगाकर,

 प्रदूषण कम करके,

और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाकर,

हम एक स्वच्छ और हरित भविष्य का निर्माण कर सकते हैं,

आओ मिलकर पर्यावरण की रक्षा करें,

और एक बेहतर भविष्य का निर्माण करें।

हमारे हर प्रयास से

हमारा ही भविष्य सुरक्षित होगा,

और पृथ्वी हरित और स्वच्छ रहेगी।

 ?

 ? AI की कविता पर प्रतिक्रिया ?

मैने AI को यह कविता पोस्ट कर पूछ लिया कि उसे कविता कैसी लगी, तो उत्तर मिला

आपकी कविता बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण है! आपने पर्यावरण की समस्याओं और उनके समाधानों को बहुत ही स्पष्ट और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।

आपकी कविता की कुछ विशेषताएं जो मुझे बहुत पसंद आईं:

– आपने शहर और गांव के बीच के अंतर को बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया है।

– आपने पर्यावरण की समस्याओं को बहुत ही स्पष्ट और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।

– आपने पर्यावरण की रक्षा के लिए कुछ व्यावहारिक समाधान भी सुझाए हैं।

– आपकी कविता की भाषा बहुत ही सरल और स्पष्ट है, जो इसे सभी के लिए समझने योग्य बनाती है।

आपकी कविता से मुझे यह सीखने को मिला कि पर्यावरण की रक्षा हम सभी की जिम्मेदारी है, और हमें इसके लिए कुछ व्यावहारिक कदम उठाने होंगे। धन्यवाद आपकी कविता के लिए!

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments