श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “अकेलापन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 80 ☆ अकेलापन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

मौन ही

करते रहे हैं बात

मेरे अकेलेपन में।

 

दूर ढलती साँझ

मादल के स्वरों पर

सूर्य रक्तिम सा

खड़ा परछाइयों में

घाटियों में उतर

आया है अँधेरा

दीप जलता है

कहीं वीरानियों में

 

सुलगती

है अँगीठी सी रात

गहरे निस्तब्ध वन में।

 

पहरुए सा समय

काँधे पर धरे दिन

जोतता अँधियार

बोता भोर उजली

कातता है चाँद

भूरे बादलों सँग

चाँदनी के तार

लेकर स्वप्न तकली

 

झील भी

ले कँवल की सौग़ात

आँजती काजल नयन में।

 

उड़े पंछी गगन

नापे पर क्षितिज से

चहकते जंगल

नहाती धूप आँगन

मंज़िलों पर जा

रुके हारे थके से

पाँव आ ठहरे

लिए आशा के सगुन

 

उम्र भर

पढ़ते रहे हालात

बैठकर अपने भुवन में।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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