स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 216 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

ऋषिवर

गालव,

जानते हो

गुरु दक्षिणा देने के

हठाग्रह ने

विस्फोटित किया

ज्वालामुखी

और

उसके लावे में

बह गई

तुम्हारी पवित्रता ।

तार-तार हो गई

संस्कृति

छिन्न-भिन्न हो गई

मर्यादा

दफन हो गया

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते

का पुण्य घोष ।

यानी

नारी को

माता को, बहिन, बेटी को

निर्वस्त्र कर

नीलाम पर चढ़ा दिया

भरे बाजार में।

चार बार ।

क्यों किया

यह हठाग्रह तुमने?

क्या ज्ञात नहीं थीं तुम्हें

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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