श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना विचार मंथन। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 22२ ☆ विचार मंथन

कभी – कभी हम सब अनजाने ही नादानी कर  बैठते हैं और फिर जोर- जोर से उसके प्राश्चित हेतु प्रयास करने लगते हैं। ऐसा ही एक बार  अनोखेलाल जी के साथ हुआ। जब ये अपने दोस्त के घर में चाय पी रहे थे तभी   हैंडल इनके हाथ में आ गया और कप नीचे, जिससे चाय कालीन में फैल गयी अब तो इन्होंने आदत के अनुरूप  जेब से फेवीक्विक निकाला और हैंडल को  कप से लगाते हुए बोले, भाभी जी फीस दीजिये  आपके इस टूटे हुए कप को सुधार दिया। तभी उनकी छोटी बिटिया तपाक से बोल पड़ी, “अंकल ये कारपेट कौन साफ करेगा …? वैसे भी मम्मी कहतीं हैं कि आप तो जब देखो  सिर खाने चले आतें हैं, अपने न सही तो दूसरे के समय की कद्र करनी चाहिए।”

अब तो वहाँ एक अनचाहा सन्नाटा छा गया, अनोखेलाल जी उठे और चुप चाप  जाते हुए सोच रहे थे कि शायद कोई उन्हें रुकने के लिए कहे।

***

वातावरण शुद्धता

व्यक्ति मन प्रबुद्धता

हवन करेंगे मिल

अग्नि को जलाइए ।

*

आहुति के साथ- साथ

हवि रखें  हाथ- हाथ

मंत्र मुख बोलकर

ईश को मनाइए ।।

*

कामनाएँ पूर्ण सारी

शुभ कार्यों की बारी

स्वाहा – स्वाहा कहकर

देव को बुलाइए ।।

*

यजेश्वर विष्णु देव

समिधायें खूब लेव

घी गुड़ खीर पूड़ी

भोग को लगाइए ।।

*

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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