सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – भावों की बहती सुरसरिता…।
रचना संसार # 31 – गीत – भावों की बहती सुरसरिता… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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भावों की बहती सुरसरिता,
कमल पुष्प से हम खिल जाते।
पूनम की संध्या बेला में,
सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।
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प्रीत सुधा रसधारा बहती,
घोर अमावस भी छट जाती।
उजियारा फिर जग में होता,
पूनम की ये रात सुहाती।।
मधुरिम बोल मधुर धुन सुनते,
पुष्प देवता भी बरसाते।
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भावों की बहती सुरसरिता,
कमल पुष्प से हम खिल जाते।।
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पावन छुअन सजन की पाकर,
अंग- अंग संदल हो जाता।
धरती अंबर से मिल जाती,
झंकृत रोम -रोम हो जाता।।
अलि करते गुंजार मनोहर,,
सजन लाज से हम सकुचाते।
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भावों की बहती सुरसरिता,
कमल पुष्प से हम खिल जाते।।
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मादक इन नयनों में खोकर,
छंद छंद रस गागर भरता।
आल्हादित कण- कण हो जाता,
अलंकार से सृजन निखरता।।
रति सा सुंदर रूप देखकर ,
कामदेव बन मुझे लुभाते ।
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भावों की बहती सुरसरिता,
कमल पुष्प से हम खिल जाते।।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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