डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा अनुष्ठान। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 146 ☆

☆ लघुकथा – अनुष्ठान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

असल में पूरी पंडिताइन हैं वह। अरे भाई ! गजब की पूजा-पाठी। कोई व्रत-त्यौहार नहीं छोड़तीं। करवाचौथ, हरितालिका सारे व्रत निर्जल रहती है। आज के समय में भी प्याज-लहसुन से परहेज है। अन्नपूर्णा देवी का व्रत करती है। इस बार उद्यापन करना है। बड़ी धूमधाम से तैयारी भी चल रही है। इक्कीस ब्राह्मणों को भोजन कराना। दान-दक्षिणा अपनी श्रद्धा तथा सामर्थ्य के अनुसार। पूजा की सामग्री में इक्यावन मिट्टी के दीपक लाने हैं। कुम्हारवाड़ा घर से बहुत दूर था। पास के ही बाजार में एक बूढ़ी स्त्री दीपक लिए बैठी दिख गई। पच्चीस रुपये में इक्यावन दीपक खरीद लिए गए। पंडिताइन ने पचास का नोट निकालकर बूढ़ी उस स्त्री को दिया और दीपक थैले में रखने लगी।

पंडित जी ने बोला है–“दीपकों में खोट नहीं होना चाहिए। किसी दीपक की नोंक जरा-सी भी झड़ी न हो। ” देखभाल कर बड़ी सावधानी से दीपक रखने के बाद, पंडिताइन ने पच्चीस रुपए वापस लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया।

बूढ़ी माई ने धुंधली आँखों से पचास के नोट को सौ का नोट समझ, पचहत्तर रुपए पंडिताइन के हाथ में वापस रख दिए। पंडिताइन की आँखें चमक उठीं। वह बड़ी तेजी से लगभग दौड़ती हुई-सी वहाँ से चल दी।

अपनी गलती से अनजान बूढ़ी माई शेष दीपकों को करीने से संभाल रही थी। अन्नपूर्णा देवी के अनुष्ठान की तैयारी अभी बाकी थी।

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – richasharma1168@gmail.com  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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