डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 42 – साहित्य निकुंज ☆
☆ समय की धार ☆
इंदू की बाहर पोस्टिंग हो जाने बाद आज उसका फोन आया. वहां के सारे हालचाल सुनाए और निश्चितता से कहा बहुत मजे से जिंदगी चल रही है.
हमने ना चाहते भी पूछ लिया अब शादी के बारे में क्या ख्याल है यह सुनते ही उसका गला भर आया.
उसने कहा..” मां बाबूजी भी इस बारे में बहुत फोर्स कर रहे हैं लेकिन मन गवाही नहीं दे रहा कि अब फिर से वही जिंदगी शुरू की जाए पुराने दिन भुलाए नहीं भूलते.”
हमने समझाया ” सभी एक जैसे नही होते, हो सकता है कोई इतना बढ़िया इंसान मिले कि तुम पुराना सब कुछ भूल जाओ.”
“दी कैसे भूल जाऊं वह यादें… ,कितना गलत था मेरा वह निर्णय, पहले उसने इतनी खुशी दी और उसके बाद चौगुना दर्द , मारना -पीटना, भूखे रखना. उसकी मां जल्लादों जैसा व्यवहार करती थी.
मां बाप की बात को अनसुना करके बिना उनकी इजाजत के कोर्ट मैरिज कर ली और हमारे जन्म के संबंध एक पल में टूट गये.”
“देखो इंदु , अब तुम बीती बातों को भुला दो और अब यह आंसू बहाना बंद कर दो.”
दी यह मैं जान ही नहीं पाई कि जो व्यक्ति इतना चाहने वाला था वह शादी के बाद ही गिरगिट की तरह रंग कैसे बदलने लगा.”
“इंदु अब तुम सारी बातों को समय की धार में छोड़ दो.”
“नहीं दी यह मैं नहीं भूल सकती मैंने अपने माता पिता को बहुत कष्ट दिया,
इसका उत्तर भगवान ने हमें दे दिया.”
“इंदु एक बात ध्यान रखना माता -पिता भगवान से बढकर है, वे अपनी संतान को हमेशा मांफ कर देते है.”
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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