डॉ.वंदना पाण्डेय

परिचय 

शिक्षा – एम.एस.सी. होम साइंस, पी- एच.डी.

पद : प्राचार्य,सी.पी.गर्ल्स (चंचलबाई महिला) कॉलेज, जबलपुर, म. प्र. 

विशेष – 

  • 39 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव। *अनेक महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के अध्ययन मंडल में सदस्य ।
  • लगभग 62 राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध-पत्रों का प्रस्तुतीकरण।
  • इंडियन साइंस कांग्रेस मैसूर सन 2016 में प्रस्तुत शोध-पत्र को सम्मानित किया गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान शोध केंद्र इटली में 1999 में शोध से संबंधित मार्गदर्शन प्राप्त किया। 
  • अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘एनकरेज’ ‘अलास्का’ अमेरिका 2010 में प्रस्तुत शोध पत्र अत्यंत सराहा गया।
  • एन.एस.एस.में लगभग 12 वर्षों तक प्रमुख के रूप में कार्य किया।
  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में अनेक वर्षों तक काउंसलर ।
  • आकाशवाणी से चिंतन एवं वार्ताओं का प्रसारण।
  • लगभग 110 से अधिक आलेख, संस्मरण एवं कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

 प्रकाशित पुस्तकें- 1.दृष्टिकोण (सम्पादन) 2 माँ फिट तो बच्चे हिट 3.संचार ज्ञान (पाठ्य पुस्तक-स्नातक स्तर)

(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व मानवीय मूल्यों को समर्पित- पूर्व महाधिवक्ता स्व.यशवंत शंकर धर्माधिकारीके संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)

आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆   

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ 

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १७ – “डॉ. श्री राम ठाकुर दादा- समाज सुधारक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १८ – “राजकुमार सुमित्र : मित्रता का सगुण स्वरुप” – लेखक : श्री राजेंद्र चन्द्रकान्त राय ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १९ – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २० – “सच्चे मानव थे हरिशंकर परसाई जी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २१ – “ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा – स्व. डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २२ – “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २३ – “मेरी यादों में, मेरी मुंह बोली नानी – सुभद्रा कुमारी चौहान” – डॉ. गीता पुष्प शॉ ☆ प्रस्तुती – श्री जय प्रकाश पांडे ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २४ – “संस्कारधानी के सिद्धहस्त साहित्यकार -पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी” – लेखक : श्री अजय कुमार मिश्रा ☆ संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २५ – “कलम के सिपाही – मुंशी प्रेमचंद” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २६ – “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २७– “स्व. फ़िराक़ गोरखपुरी” ☆ श्री अनूप कुमार शुक्ल ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २८ – “पद्मश्री शरद जोशी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २९ – “सहकारिता के पक्षधर विद्वान, चिंतक – डॉ. नंद किशोर पाण्डेय” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३० – “रंगकर्मी स्व. वसंत काशीकर” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३१ – “हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी के विद्वान — कवि- शायर पन्नालाल श्रीवास्तव “नूर”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३२ – “साइकिल पर चलने वाले महापौर – शिक्षाविद्, कवि पं. रामेश्वर प्रसाद गुरु” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३३ – “भारतीय स्वातंत्र्य समर में क्रांति की देवी : वीरांगना दुर्गा भाभी” ☆ डॉ. आनंद सिंह राणा ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३४ –  “जिनके बिना कोर्ट रूम भी सूना है : महाधिवक्ता स्व. श्री राजेंद्र तिवारी” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३५ – “सच्चे मानव – महेश भाई” – डॉ महेश दत्त मिश्रा” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३६ – “महिलाओं और बच्चों के लिए समर्पित रहीं – विदुषी समाज सेविका श्रीमती चंद्रप्रभा पटेरिया” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३७ – “प्यारी स्नेहमयी झाँसी वाली मामी – स्व. कुमुद रामकृष्ण देसाई” ☆ श्री सुधीरओखदे   ☆

स्व.यशवंत शंकर धर्माधिकारी

☆ कहाँ गए वे लोग # ४० ☆

☆ “मानवीय मूल्यों को समर्पित- पूर्व महाधिवक्ता स्व.यशवंत शंकर धर्माधिकारी” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय

महान व्यक्ति अपने कर्मों की छाप और कदमों के अमिट निशान दुनिया में छोड़ जाते हैं, ऐसे ही महान शख्स थे स्व. यशवंत शंकर धर्माधिकारी। आपका जन्म स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सामाजिक सुधार आंदोलनों के नेता, विनोबा भावे के अनन्य सहयोगी एवं गांधीवादी विचारधारा के समर्थक वर्धा के श्री शंकर त्र्यंबक धर्माधिकारी के परिवार में हुआ था। प्रतिष्ठित परिवार से जो सत्य, अहिंसा, ईमानदारी, कर्मठता के संस्कार उन्हें मिले उन्हीं सब का निर्वहन कर उन्होंने अपने व्यक्तित्व को और अधिक सुरभित बनाया । धर्माधिकारी जी ने नागपुर से 1952 में विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की तदोपरान्त उन्होंने संस्कारधानी जबलपुर में वकालत का कार्य प्रारंभ किया । इस क्षेत्र में वे लगभग 45 वर्ष तक  सेवाएं प्रदान करते रहे । उन्होंने अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ न्याय क्षेत्र में भी बुलंदियां हासिल कर शोहरत प्राप्त की । उनकी शख्सियत को नजरअंदाज करना न तो समाज के लिए संभव था और न ही सरकार के लिए । उनके परिश्रम, लगन, ईमानदारी और बुद्धिमत्ता ने उन्हें 12 अगस्त 1971 में महाधिवक्ता के रूप में प्रतिष्ठित किया। नियम-सिद्धांतों, नैतिकता और ईमानदारी की डोर से बंधे धर्माधिकारी जी को आपातकाल में श्री जयप्रकाश नारायण को अपने आवास में अपने सानिध्य में रखने के कारण 1975 में नैतिक जिम्मेदारी के तहत पद त्याग करना पड़ा उन्होंने साबित कर दिया कि –

कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गए

कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे बदल गए

ऊंचाईयां उन्होंने केवल न्याय के क्षेत्र में ही तय नहीं की थी, वे श्रेष्ठ साहित्यकार भी थे। उनकी साहित्य में गहरी रुचि थी हिंदी, मराठी और अंग्रेजी साहित्य पर उनका पूर्ण अधिकार था । इतिहास, दर्शन तथा आध्यात्म में भी उनकी गहरी पैठ थी । सच्चाई की जितनी कड़वाहट  उनके व्यवसाय से जुड़ी थी, संगीत की उतनी ही मधुरता उनके जीवन में घुली थी। वे संगीत के भी बेहद शौकीन थे। विभिन्न शैक्षिक, सांस्कृतिक आध्यात्मिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति उनकी रुचि का परिचायक थी । साधारणता यह देखा जाता है कि साहित्य और कला प्रेमी खेल के मैदान से दूर रहते हैं, किंतु उन्हें खेल में भी दिलचस्पी थी और भी इसका भरपूर आनंद भी लेते थे ।

श्री धर्माधिकारी जी महान शिक्षाशास्त्री और शिक्षा प्रेमी थे। नगर के गौरवशाली गोविंदराम सेक्सरिया अर्थ वाणिज्य महाविद्यालय, जबलपुर के लम्बे समय तक शासी निकाय के अध्यक्ष रहे। उनके मार्गदर्शन में महाविद्यालय पुष्पित, पल्लवित हुआ और प्रदेश के श्रेष्ठ महाविद्यालय में अपना स्थान बनाया । एड. धर्माधिकारी जी रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कार्य परिषद के साथ-साथ अनेक महाविद्यालयों  में भी शासी निकाय के सदस्य रहे। शहर की कोई भी प्रतिष्ठित शिक्षण संस्था ऐसी नहीं होगी जिससे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से उनका संबंध न रहा हो।

इन सब के अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात है उनका विनम्र होना और इंसानियत के गुणों से भरपूर होना। मुझे याद आती है अपने बाल्यकाल की एक घटना । चूँकि मेरे पिता स्व. प्रो.एन के पाण्डेय गोविंदराम सेक्सरिया महाविद्यालय में ही प्राध्यापक थे और आदरणीय धर्माधिकारी जी के घर महाविद्यालयीन कारणों से आना-जाना होता रहता था । उन दिनों मेरी मां रीढ की हड्डी की समस्या से परेशान थीं और उनके लिए चलना-फिरना कठिन हो गया था ऐसे समय में उन्होंने अपने ड्राइवर बाबूराव जी को स्पष्ट निर्देश दिया कि जब तक मां का इलाज पूर्ण नहीं हो जाता वह उनके लिए कार की व्यवस्था बनाए रखे । सरस्वती-लक्ष्मी पुत्र धर्माधिकारी जी के संवेदनशील, मानवता पूर्ण व्यवहार ने मुझे बहुत प्रभावित किया। उच्च वर्ग में जन्मे पले बढ़े श्री धर्माधिकारी जी समवर्गी में ही नहीं अपितु मध्यम और निम्न वर्गी लोगों में भी अत्यंत लोकप्रिय थे। छोटे-बड़े सभी लोग उन्हें प्यार और आदर से दादा और काका जैसे संबोधनों से संबोधित करते थे। उनके वात्सल्य पूर्ण स्नेहिल व्यवहार को मैं आज भी नहीं भूल पाती जब मैं कक्षा सातवीं की स्टूडेंट थी तब उन्होंने एक बार मुझे बग्घी में घुमाया था और रास्ते भर पिताजी की तरह सिद्धांतों के साथ ईमानदारी की राह पर चलने, कठिन परिश्रम और समय का पाबंद रहने की शिक्षा दी थी। युवा- वृद्ध, बालक सबसे उनका प्रेम पूर्ण व्यवहार रहता था। गरीबों के प्रति उनकी सहृदयता देखते ही बनती थी। वे  सबके दुख-सुख में शरीक होकर सुख को दूना और दुख को आधा कर देते थे। 15 जून 1996 को उनके निधन पर हर किसी को लगा कि कोई अपना चला गया जीवन शून्य बनाकर।  खुशमिज़ाज़, शौकीन, हंसमुख, मिलनसार, सहनशील प्रकृति के धनी एड. यशवन्त शंकर धर्माधिकारी जी की पत्नी श्रीमती यशोदा धर्माधिकारी जी भी शिक्षा और समाज सेवा में सदैव अग्रणी रहीं । समाज सेवा की परंपरा को आगे बढ़ाया उनके पुत्र स्व. प्रियदर्शन धर्माधिकारी जी ने, जो नगरीय प्रशासन राज्य मंत्री भी रहे। पुत्रवधु श्रीमती प्रीति धर्माधिकारी जी भी निरंतर शिक्षा और समाज सेवा में उदारता के साथ जुड़ी हैं । पुत्री स्व.की शुभदा पांडे जी ने भी शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान की। 

दादा वाय.एस.धर्माधिकारी को सादर नमन …

डॉ. वंदना पाण्डेय 

प्राचार्य, सी. पी. महिला महाविद्यालय

संपर्क : 1132 /3 पचपेड़ी साउथ सिविल लाइंस, जबलपुर, म. प्र. मोबाइल नंबर :  883 964 2006 ई -मेल : [email protected]

संकलन –  जय प्रकाश पाण्डेय

संपर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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