श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “गीत के अनुवाद…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 84 ☆ गीत के अनुवाद… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
लिख रहे हैं
आजकल सब
गीत के अनुवाद ।
अलगनी पर रात टँगती
मेड़ पर की भोर
पनघटों पर धूप हँसती
नाचते मन मोर
अब नहीं सुन
पा रहे हम
चिड़ियों के संवाद ।
मादलों पर स्वर थिरकते
पाँव खनके पेंजना
चाँद की हँसुली पहनकर
कनखियों से देखना
नहीं भावों
में दमकते
देह के आल्हाद ।
बिंब बाँधे प्रतीकों से
शब्द के शहतीर
साधकर संधान करते
बोथरी शमशीर
हो रहे हैं
मुखर हरदम
व्यर्थ के प्रतिवाद ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈