सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतनिगल रहे हैं देख धरा को

? रचना संसार # 35 – गीत – निगल रहे हैं देख धरा को…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

निगल रहे हैं देख धरा को,

जहरीले  अजगर हैं।

कोमल कलियाँ डरें बाग की,

चुभते अब नश्तर हैं।।

 *

सोन चिरैया के पंख कटे ,

बैठे घात  शिकारी हैं।

नजर बुरी है शैतानों की,

वहशी दुष्टाचारी हैं।।

तार तार अस्मत होती है,

काँटों के तो लश्कर हैं।

 *

निगल रहे हैं देख धरा को,

जहरीले अजगर हैं।।

 **

काँप रही बागों  की कलियाँ,

भ्रमर हुए हैं मतवाले।

नन्ही नन्ही कलियों पे तो,

चुभो रहे देखो भाले।

शासन ने आँखें मूंदी हैं,

धृतराष्ट्र पिता घर घर हैं।

 *

निगल रहे हैं देख धरा को,

जहरीले अजगर हैं।।

 **

गली गली में घूमें रावण,

सहमी देखो सीता है।

सरे आम लूटें नारी को,

भूले पावन गीता है।।

राम तुम्हारे भारत में तो,

दिल लोगों के पत्थर  हैं।

 *

निगल रहे हैं देख धरा को,

जहरीले अजगर हैं।।

 **

किशन द्वारिका में सोये  हैं,

हरत़े दुशासन चीर हैं।

चक्र सुदर्शन खामोश बैठा,

थके अर्जुन के तीर हैं।।

द्रोपदी का रक्षक न कोई,

प्रतिशोधों के चक्कर हैं।

 *

निगल रहे हैं देख धरा को,

जहरीले अजगर हैं।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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Jyoti

अप्रतिम गीत