श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मूल्यों का पतन…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 205☆
☆ # “मूल्यों का पतन…” # ☆
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बड़ा अजीब
इस जमाने का चलन है
दिखावे का है प्यार
मन के अंदर जलन है
चेहरे पर मुखौटे हैं
सभी सिक्के खोटे हैं
मुस्कुराहट झूठी है
फरेब में मगन है
बाहों में है यार
दिल में ना प्यार ना एतबार
टूटते रिश्तों की
यही चुभन है
मां-बाप बने हैं बोझ
कलह होती है रोज
मां-बाप की जिम्मेदारी
वृद्धाश्रम में दफन है
शरीर पर लंगोटी है
घर में नहीं रोटी है
भूख से बिलखता
यह कैसा बचपन है
महंगाई की मार है
हर शख्स बेज़ार है
सस्ती है शराब
यहां महंगा कफन है
पैरों में बेड़ियां है
हाथों में हथकड़ियां है
न्याय पेशोपेश में है
हर तरफ मूल्यों का पतन है
जीने की हसरत है
हवाओं में नफरत है
दिलों में मोहब्बत का
कौन करेगा जतन है /
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© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈