मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना
डॉ निधि जैन
( ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार। स्तम्भ का शीर्षक संभवतः World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक कविता “जरा सा दूर हो जाओ, कोरोना वायरस से बच जाओ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 3 ☆
☆ जरा सा दूर हो जाओ, कोरोना वायरस से बच जाओ☆
जरा सा दूर हो जाओ, कोरोना वायरस से बच जाओ,
न किसी के घर जाओ, ना किसी को घर बुलाओ,
कोरोना वायरस से बच जाओ l
न दोस्तों से मिलो, पर दोस्ती निभाओ, दूर रह कर प्यार को निभाओ, किसी के घर मत जाओ,
कोरोना वायरस से बच जाओ l
मौसम की मार हो या बारिश की फुहार , धूप या सूरज का खुमार, जहाँ हो, जैसे हो, वहाँ, वैसे ही खुशी मनाओ,
कोरोना वायरस से बच जाओ l
कल मिलना आज रूठना, कल रूठना आज मिलना,
तुमसे मिलना ज़रूरी नहीं, तुम्हारा होना ज़रूरी है, फिर से तुम मिल जाओ, कोरोना वायरस से बच जाओ l
रिश्तों पर संवेदनशील हो जाओ, सबकी जान की कीमत अपने जैसे लगाओ l
कोरोना वायरस से बच जाओ l
भगवान के मंदिर के दरवाजे बंद हो गए, गरीबों में भगवान का रूप देख आओ l
कोरोना वायरस से बच जाओ l
गुरुद्वारों के लंगर उठ जायें , भूखों का पेट भरने के लिए दान दे आओ l
कोरोना वायरस से बच जाओ l
आँखे बेहाल थमीं हुई सी ज़िन्दगी, कोरोना का कहर चारों ओर, जानें बेहाल हैं कहती हैं बचाओ l
कोरोना वायरस से बच जाओ l
आसमान मे पंछी उड़ते, इंसानो की आजादी का सवाल है, जानवरों और प्रकृति के प्रकोप को समझो ओर समझाओ l
कोरोना वायरस से बच जाओ l
सबके रक्त का रंग एक है, मौत का डर भी सबका एक है, भेद भाव छोड़ कर मानवता को बचाओ l
कोरोना वायरस से बच जाओ l
© डॉ निधि जैन, पुणे