श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 160 – मनोज के दोहे ☆
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महा- कुंभ का आगमन, बना सनातन पर्व।
सकल विश्व है देखता, करता भारत गर्व।।
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प्रयाग राज में भर रहा, बारह वर्षीय कुंभ।
पास फटक न पाएगा, कोई शुंभ-निशुंभ।।
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गँगा यमुना सरस्वती, नदी त्रिवेणी मेल।
पुण्यात्माएँ उमड़तीं, धर्म-कर्म की गेल।।
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सूर्य देव उत्तरायणे, मकर संक्रांति पर्व।
ब्रह्म-महूरत में उठें, करें सनातन गर्व।।
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गंगा तट की आरती, लगे विहंगम दृश्य।
अमरित बरसाती नदी, कल-कल करती नृत्य।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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