श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “इस राह के राही अनेक। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 229 ☆ इस राह के राही अनेक…

बहुत से लोगों की आदत  काम को टालने की होती है, वे अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायी नहीं होते, बस परिणाम शत प्रतिशत चाहिए, सोचिए ऐसा कैसे होगा? जब तक हम पल- पल का सदुपयोग नहीं करेंगे तब तक ऐसा ही चलता रहेगा। जहाँ वर्तमान को गुरु मानकर जीवन जीने वाले हमेशा सफलता का परचम फहराते हैं तो वहीं दूसरी ओर कल पर टालने की आदत आपको असफल बना कर कहीं का नहीं छोड़ती। कारण साफ है जब कल आता ही हीं तो आपको उसका लाभ कैसे मिल सकता है।

जिस प्रकार से अच्छे कार्य हमेशा सुखद परिणाम देते हैं वैसे ही यदि हम सतत सक्रिय रहे तो निश्चय ही परिणाम आशानुरूप होगा। वक्त रेत के ढेर की तरह फिसलता जा रहा है,  कर्मयोगी तो इसे अपने वश में कर लेते हैं परन्तु जो कुछ नहीं करते वे दूसरों के ऊपर आरोप- प्रत्यारोप करने में ही समय व्यतीत करते रह जाते हैं। इस दुनिया में सबसे मूल्यवान समय  है, वही आपको रंक से राजा बनाएगा।आप जिस भी क्षेत्र में कार्य करते हों  वहाँ पर ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वाहन करें यदि वो भी न बनें तो कम से कम आलोचक न बनें क्योंकि निंदक नियरे राखिए आज भी प्रासंगिक है पर वो  सार्थक तभी होगा जब निंदक ज्ञानी हो, उसमें निःस्वार्थ का भाव हो, सच्चा निंदक ही मार्गदर्शक का कार्य करता है।

वर्तमान कब भूत में बदल जाता है पता  नहीं चलता पर अभी भी बहुत से लोग पुराना राग अलाप रहे हैं, आज के तकनीकी युग में जब हर पल स्टेटस व डी पी बदली जा रही है तब व्यवहार कैसे न बदले पर कुछ भी हो नेकी व सच्चाई नहीं छोड़नी चाहिए  हम सबको अपने कर्तव्यों के प्रति जागरुक रहना चाहिए।

तेजी से बदलती दुनिया में कुछ भी तय नहीं रह सकता …

कल के ही अखबार आज नहीं चलते ये बात  सुविचार की दृष्टि से, प्रतियोगी परीक्षार्थी  की दृष्टि से तो सही है परन्तु व्यवहार यदि पल- पल बदले तो उचित नहीं कहा जा सकता है।

खैर जिसको जो राह सही लगती है वो उसी पर चल पड़ता है कुछ ठोकर खा कर संभल जाते हैं, कुछ दोषारोपण करके अलग राह पर चल पड़ते हैं।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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