श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे … महाकुंभ। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 246 ☆
☆ संतोष के दोहे … महाकुंभ ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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सरस्वती भागीरथी, कालिंदी के घाट।
महाकुंभ संक्रांति का, संगम पर्व विराट
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इक डुबकी से मिट रहे, सौ जन्मों के पाप
सच्चे मन से आइए, एक बार बस आप
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अमृतमयी अवगाह का, संगम में आगाज
तीर्थ राज के घाट पर, आगत संत समाज
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संगम में होता नहीं, ऊंच नीच का भेद
मान सभी का हो यहाँ, रहे न कोई खेद
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होता संगम में खतम, जन्म-मृत्यु का फेर
सागर मंथन से गिरा, जहाँ अमृत का ढेर
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साहित्यिक उत्कर्ष की, है पुनीत पहचान
गंगा- जमुना संस्कृति, तीरथराज महान
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श्रद्धा से तीरथ करें, कहते तीरथराज
काशी मोक्ष प्रदायिनी, सफल करे सब काज
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चारि पदारथ हैं जहाँ, ऐसे तीरथराज
करें अनुसरण धर्म का, हो कृतकृत्य समाज
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स्वयं राम रघुवीर ने, किया जहाँ अस्नान
पूजन अर्चन वंदना, संगम बड़ा महान
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सुख – दुःख का संगम यहाँ, पूजन अर्चन ध्यान
तर्पण पितरों का करें, पिंडदान अस्नान
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महाकुंभ में आ रहे, नागा साधू संत
जिनका गौरव है अमिट, महिमा जिनकी अनंत
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नागा साधू संत जन, जिनके दरश महान
करें त्रिवेणी घाट में, जो पहले अस्नान
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महिमा संगम की बड़ी, कह न सके संतोष
तीर्थराज दुख विघ्न हर, दूर करो सब दोष
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
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