सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – टूट गए अनुबंध सभी हैं…।
रचना संसार # 38 – गीत – टूट गए अनुबंध सभी हैं… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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तन खंडित मन खंडित अब तो,
चले आँधियाँ दीप बुझाएँ,
पीड़ा अंतस् की है भारी,
कैसे अब मन को समझाएँ।।
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छलक रहे नैनों से सागर,
नही मिला अपनों का संबल।
गहन तिमिर,उजियार नही है,
घोर उदासी के हैं बादल।।
अपने सभी पराए लगते,
व्यथा कथा हम किसे सुनाएँ।
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टूट गए अनुबंध सभी हैं,
नियति चक्र से जीवन हारे।
अभिशापित है मदिर-प्रीति भी,
भटक रहे बन के बंजारे।।
तूफानों में फँसी नाव है,
अनुगामी बस हैं विपदाएँ।
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संत्रासों में जीवन बीते,
नही हाथ में सुख की रेखा।
चलते हम हैं अंगारों पर,
कैसा विधि का है प्रभु लेखा।।
मरुथल-सा जीवन है सारा,
धूमिल होती सब आशाएँ।
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घोर निराशा है जीवन में,
प्यासा पनघट सूखी डाली।
जाल बिछा है आघातों का,
पड़ी ग्रहण की छाया काली।।
बोझिल होते स्वर सरगम के,
मिली धूल में अभिलाषाएँ।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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