प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – वीण वादिनी शारदे…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 211 ☆ कविता – वीण वादिनी शारदे ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे,

डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !

*

हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,

स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना

*

आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,

चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !

*

सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना

बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना

*

रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और औ” ध्वंस है

बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे

*

ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई

बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई 

उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में

*

भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे

चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में

*

जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में

थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में

*

हृदय को माँ ! पूर्णिमा सा मधु भरा संसार दे

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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