स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 225 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
माधवी ।
तुम
देवी नहीं,
पाषाणी नहीं
मानुषी हो,
क्या
तुम्हारे मन में
कभी नहीं आया
कि कोई एक तुम्हारा हो
अपना हो
ऐसा अपना
जिसके वक्ष पर
विश्राम कर सको,
जिसके
बाहुओं में बँधकर
सुख का अनुभव करो
और जिसके कंधों पर
सिर रखकर
रो सको ।
अनुभव नहीं किया
तुमने
स्तनपान कराने
दुलारने
और
लोरी गाने का आनंद ।
माधवी,
तुम्हारे बारे में
सोचते सोचते
मैं
तुम्हारे काल से
आ जाता हूँ
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सादर नमन