श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 333 ☆

?  लघुकथा – मन चंगा तो कठौती में गंगा…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

उसका पुश्तैनी मकान प्रयाग में है संगम के बिल्कुल पास ही। पिछले साल दो साल से जब से कुंभ के आयोजन की तैयारियां शुरू हुई , उसकी सामान्य दिनचर्या बदलने पर वह मजबूर है। मेले की शुरुआत में परिचितों, दूर पास के रिश्तेदारों, मेहमानों के कुंभ स्नान के लिए आगमन से पहले तो बच्चे, पत्नी बहुत खुश हुए पर धीरे धीरे जब शहर में आए दिन वी आई पी मूवमेंट से जाम लगने लगा, कभी भगदड़ तो कभी किसी दुर्घटना से उसकी सरल सीधी जिंदगी असामान्य होने लगी । दूधवाला, काम वाली का आना बाधित होने लगा तो सब परेशान हो गए । इतना कि, आखिर उसने स्वयं ऑफिस से छुट्टी ली और घर बंद कर कुंभ मेले के पूरा होने तक के लिए सपरिवार पर्यटन पर निकलने को मजबूर होना पड़ा ।

प्रयाग की ओर उमड़ती किलोमीटरों लंबी गाड़ियों के भारी काफिले देख कर उसे कहावतें याद आ रही थी, देखा देखी की भेड़ चाल, मन चंगा तो कठौती में गंगा ।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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