डॉ निधि जैन
( ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार। स्तम्भ का शीर्षक संभवतः World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है जीवन के स्वर्णिम कॉलेज में गुजरे लम्हों पर आधारित एक समसामयिक भावपूर्ण कविता “यह फुर्सत के पल मिले हैं कई सालों के बाद”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 4 ☆
☆ यह फुर्सत के पल मिले हैं कई सालों के बाद ☆
यह गुजरे जमाने ताजा हुए हैं, कई सालों के बाद,
यह भागती दौड़ती सी जिंदगी रुक सी गई है कई सालों के बाद ।
अब शाम की चाय की प्याली भी टकराने लगी है,
पुरानी डायरी फिर संदूक से निकलकर होठों की मुस्कान बनने लगी है,
यह सुबह का अखबार भी शाम को पलटने लगा है,
यह गुजरे जमाने ताजा हुए हैं, कई सालों के बाद,
यह भागती दौड़ती सी जिंदगी रुक सी गई है कई सालों के बाद ।
ये अब गुजरे दिनों के किस्से भी दोहराने लगे हैं,
अब दोपहर का खाना भी साथ परोसने लगा हैं ,
ये पुरानी सी गजल भी गुनगुनाने लगे हैं ,
ये हर दिन रविवार सा लगने लगा हैं ।
यह गुजरे जमाने ताजा हुए हैं, कई सालों के बाद,
यह भागती दौड़ती सी जिंदगी रुक सी गई है कई सालों के बाद ।
देर तक पिक्चर देखना फिर देर से सोकर उठना,
ये बेफिक्री का आलम आराम की जिंदगी अच्छी लगना,
मौसम आएंगे और चले जाएंगे,
ये पल जाएंगे फिर ना आएंगे,
हर दिन हर पल ताजा हो जाएंगे।
आओ इन्हें जी ले, ये पल फिर ना मिल पाएंगे,
यह गुजरे जमाने ताजा हुए हैं, कई सालों के बाद,
यह भागती दौड़ती सी जिंदगी रुक सी गई है कई सालों के बाद ।
© डॉ निधि जैन, पुणे