आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – गौरैया मुंडेर पर!।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 223 ☆
☆ पूर्णिका – गौरैया मुंडेर पर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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हुई भोर मुस्काइए
सूर्य कहे उठ जाइए
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गौरैया मुंडेर पर
आई भोग लगाइए
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फुदक गिलहरी नच रही
करतल ध्वनि गुंजाइए
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तितली के पर निकलेंगे
कैंची नहीं चलाइए
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कली-भ्रमर मत दूर हों
सहजीवन समझाइए
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कड़वी बातें बहुत हुईं
खुश हो कुछ फरमाइए
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स्नेह साधना कर सलिल
संजीवित हो जाइए
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१३.२.२०२५
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