श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है ‘मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 165 – सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने ☆

ऋतु वसंत की थपकियाँ, देतीं सदा दुलार।

प्रेमी का मन बावरा, बाँटे अनुपम प्यार।।

 *

चारों ओर बहार है, आया फिर मधुमास।

धरा प्रफुल्लित हो रही, देख कृष्ण का रास।।

 *

छाया है मधुमास यह, जंगल खिले पलाश।

आम्रकुंज है झूमता, यह मौसम अविनाश।

 *

कुसुमाकर ने लिख दिया, फागुन को संदेश।

वृंदावन में सज गया, होली का परिवेश।।

 *

ऋतुओं का ऋतुराज है, छाया हुआ वसंत।

बाट जोहती प्रियतमा, कब आओगे कंत।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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