श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “गाँव से अपने…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 95 ☆ गाँव से अपने… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
☆
लौट आया हूँ शहर में
गाँव से अपने।
बिछ गए हैं जाल
यंत्रणा झेलती पीढ़ी
बंद पिंजरों में सिसकते
टूटी चढ़ें सीढ़ी
खो गए गहरे कुएँ में
आँख के सपने।
ख़बर बुनती रात
सहम जाती हर सुबह है
पराजय थक चुकी
जन्मती फिर-फिर कलह है
घोषणाओं में दबे हैं
भूख के टखने।
हार जाता युद्ध है
मौसम बदलता चाल
खेत की ख़ामोशियाँ
दब गये सारे सवाल
अब शिथिल से बाजुओं में
टूटते डैने।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈