श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हमप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है आपके द्वारा सुश्री प्रगति गुप्ता  जी द्वारा लिखित कथा संग्रह “कुछ यूं हुआ उस रातपर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 176 ☆

☆ “कुछ यूं हुआ उस रात” – लेखिका … सुश्री प्रगति गुप्ता ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक चर्चा

कहानी संग्रह … “कुछ यूं हुआ उस रात”

लेखिका … सुश्री प्रगति गुप्ता

प्रभात प्रकाशन नई दिल्ली

पृष्ठ १३८

मूल्य २५० रु

आई एस बी एन ९७८९३५५२१८७२८

चर्चा … विवेक रंजन श्रीवास्तव, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी, भोपाल

कुछ यूं हुआ उस रात” प्रतिष्ठित तथा अनेक स्तरों पर सम्मानित कथाकार प्रगति गुप्ता की १३ कहानियों का संग्रह है। आधुनिक समाज में मानवीय संबंधों की जटिलताओं को उजागर करती प्रतिनिधि कहानी “कुछ यूं हुआ उस रात” को पुस्तक का शीर्षक दिया गया है। “यह शीर्षक स्वयं में एक रहस्य और अनिश्चितता का संकेत देता है। यह कहानी तिलोत्तमा नामक पात्र के इर्द-गिर्द घूमती है, जो रात को फोन पर एक लड़की से बात करती है। यह बातचीत उसके लिए एक तरह का आधार बन जाती है, जो उसके अकेलेपन को कम करने में मदद करती है। हालांकि, एक दिन वह पाती है कि उस लड़की का फोन बंद है, और वह सोचने लगती है कि क्या वह लड़की वास्तविक थी या केवल उसकी कल्पना का हिस्सा थी। यह घटना तिलोत्तमा को भावनात्मक रूप से विचलित करती है। कहानीकार ने नायिका के मनोभावों को गहराई से चित्रित करने में सफलता अरजित की है। जिससे पाठक मन कहानी की विषयवस्तु सेजुड़ जाता है। अकेलेपन और संबंधों की तलाश से जूझता आज का महानगरीय मनुष्य तकनीक का उपयोग करके अपने अकेलेपन को कम करने की कोशिश करता दिखता है। हाल ही भुगतान के आधार पर मन पसंद वर्चुअल पार्टनर मोबाईल पर उपलब्ध करने के साफटवेयर विकसित किये गये हैं। यह थीम आज के डिजिटल युग में बहुत प्रासंगिक है। आधुनिकता की चकाचौंध में लोग इतने एकाकी हो गये हैं कि मनोरोगी बन रहे हैं। आत्मीयता की तलाश तथा सच्चे संबंधों तक तकनीक से तलाश रहे हैं। कहानी में फोन को एक ऐसे माध्यम के रूप में दिखाया गया है जो संबंध बनाने में मदद करता है, लेकिन उसे टिकाऊ बनाने में असमर्थ होता है। इसी थीम पर मैने एक कहानी रांग नम्बर पढ़ी थी।

तिलोत्तमा के चरित्र के माध्यम से लेखिका ने भावनात्मक संवेदनशीलता को बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित किया है। उसका द्वंद्व और असमंजस पाठकों के मन में गहरा प्रभाव छोड़ता है, और कहानी को विचारोत्तेजक रचना बनाता है।

प्रगति गुप्ता की लेखन शैली सरल और प्रभावशाली है। उनकी भाषा में सहजता है जो पाठकों को कहानियों के कथानक से जोड़ने में मदद करती है। अभिव्यक्ति संवादात्मक और प्रवाहमय शैली में है। वे कहानियों में सकारात्मक प्रासंगिक थीम्स उठाती है और पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है। यह कहानी संग्रह पिछली पीढ़ी के प्रेमचंद जैसे पारम्परिक ग्रामीण परिवेश के लेखकों की कहानियों से तुलना में अधिक आधुनिक और तकनीक-केंद्रित प्रतीत होता है। संग्रह में “कुछ यूं हुआ उस रात” केअतिरिक्त, अधूरी समाप्ति, कोई तो वजह होगी, खामोश हमसफर, चूक तो हुई थी, टूटते मोह, पटाक्षेप, फिर अपने लिये, भूलने में सुख मिले तो भूल जाना, वह तोड़ती रही पत्थर, सपोले, समर अभी शेष है, और कल का क्या पता शीर्षक से कहानियां संग्रहित हैं जो एक अंतराल पर रची गई हैं। कहानियों के शीर्षक ही कथावस्तु का एक आभास देते हैं। प्रगति गुप्ता मरीजों की काउंसलिंग का कार्य करती रही हैं, अतः उनका अनुभव परिवेश विशाल है। उनके पास सजग संवेदनशील मन है, अभिव्यक्ति की क्षमता है, भाषा है, समझ है अतः वे उच्च स्तरीय लिख लेती हैं। उन्हें वर्तमान कहानी फलक पर यत्र तत्र पढ़ने मिल जाता है। चूंकि वे अपनी कहानियों में पाठक को मानसिक रूप से स्पर्श करने में सफल होती हैं अतः उनका नाम पाठक को याद रहा आता है। उनके नये कहानी संग्रहों की हिन्दी कथा जगत को प्रतीक्षा रहेगी।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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Pragati Gupta

बहुत बहुत शुक्रिया विवेकजी. मेरे लिए आपके विचार अमूल्य हैं। 🙏